बनते बिगड़ते व्यक्तित्व में अपनी खोज

यह सच है कि खुद के व्यक्तित्व से खुद को समझना भी एक बेहतरीन अनुभव हैं।


                    Kishan kumar joshi quote

अपना व्यक्तिगत व्यक्तित्व बनाना और दूसरे व्यक्तियों द्वारा बनाये गए व्यक्तित्व का निरन्तर परिवर्तित होते रहना अच्छा है खैर खामियां भी हैं जो व्यक्तित्व आपके बारे में गढ़ चुके वो विलक्षित हो जाते हैं। 


यह जो दुनिया है यहां हर किसी को एक दूसरे में झांकने कि लत लगी है खुद के अंदर झांकने से सब डरते हैं सबको दुसरो के बारे में अधिक जिज्ञासा रहती हैं इसलिए यहाँ कोई भी व्यक्ति किसी कि भी छवि अपने मन मुताबिक बना लेता है या दूसरे के व्यक्तित्व को अपने अनुरूप गढ़ देता है।


जो व्यक्ति आपकी छवि अपने आपसे मन मे बनाता हैं वो व्यक्ति तब आहत होता है जब उसको पता चलता है कि आप उसके सोच के मुताबिक नहीं है जैसा उसने आपके बारे में सोचा था वो सोचता है या कहता है कि "आप तो कभी ऐसे नहीं थे आप इतने सही या गलत कैसे हो गए" मैं सोचता हूँ कि इसे कब पता चला कि मैं कैसा हूं और कैसा-कैसा होने की संभावनाएं बचाकर रखता हूं सहज प्रयास यही है कि ख़ुद को परिवर्तित करता रहूं क्योंकि लिखने के वक्त कई पाठकों ने जो मेरी छवि बना ली उन्होंने मुझे सिमटने के लिए विवश किया है उससे खुद को आजाद कर सकू जिससे मैं अपने आप को बेहतर कर सकू अगर कोई मेरा व्यक्तित्व बना भी ले तो वो टूट जाए कई बार तो जानबूझकर ऐसी कोशिश करता हुँ।

लंबे वक्त से लिखने के लिए प्रयासरत रहा हूँ बहुत लिखा भी है अच्छा व बुरा और कितना ही बाकी रह गया लिखना अपने बारे में और अपने लिए व अपनो के लिए बहुत सी चीजें छूट गयी है जाने कैसी कैसी छवि बन चुकी है मेरी राजनीतिक परिदृश्यों में व सामाजिक परिदृश्यों में स्वाभाविक भी है कोई किसी पार्टी का कह देता कोई तो धर्म देश ही बदल जाता है हर कोई अपने मन मुताबिक छवि बना रहा है लेकिन जो छवि बना लेते हैं फिर आपको वैसा ही देखना चाहते हैं जैसा वो मान बैठे हैं और आपको उसका अहसास तक नहीं होता ये एक तरह की क़ैद है यह छवि आपको खूब परेशान करती हैं जैसे मुझे मेरी छवि जो बन चुकी वो करती हैं जब कोई भी आपका व्यक्तित्व बना लेता है अपने आप से तो उस व्यक्तित्व के दायरे से जब आप बाहर निकलते हैं तो छवि बनाने वाला व्यक्ति अलग ही व्यवहार करता है वो पोलटिकल लाइन पर टार्गेट करते हैं। 


कई महानुभाव हैं जो छवि निर्माण में बहुत पब्लिसिटी करते हैं बहुत हैं जो आधुनिक और स्टालिश दिखकर अपना व्यक्तित्व गढ़ लेते हैं बाकी बेचारे हम जैसे बुरा - बेहतर लिखकर या बेहतर दिखकर थोड़ी बहुत इज्जत और परवाह कि गुजारिश करते हैं औऱ उसे बचाने के लिए अपनी पूरी मेहनत लगा देते हैं ऐसे बहुत लोगो को मैं जानता हूँ निजी जीवन में वो असफल रहते हैं करियर में परिवार में समाज मे लेकिन दुनिया को सुखी व अच्छे संबंधों, अच्छी नौकरियों, जीवन जीने के तरीके पर ज्ञान देते हैं लेकिन इस खेल में असली बात सब छिपा जाते हैं सब अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं ज़्यादा नहीं लिखूंगा आप बोर हो जाएंगे क्योंकि मैं ऐसे भी लिखता हूँ आपने यह छवि नहीं बनाई होगी मेरी, मैं इस तरह बहुत कम लिखता हूँ आप भी पहली बार पढ़ रहे होंगे।


अभी तक के जीवन में साफ सच लिखकर बहुत शत्रु अर्जित किए हैं मेने, कइयों के दिल को ठेस पहुंचती है मेरे लिखने से लेकिन मेने अपने हिस्से के सबसे ज़्यादा सच सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर ही लिखे हैं।


आज और एक सच लिख रहा हूँ कि आपको सही लगने वाला इंसान सबसे बड़ा धोखेबाज होता है वो निरन्तर कोशिस करता है कि आपके सामने सच्चा ओर अच्छा बनके रहे वो आपको आभास देता है कि उससे ग़लती नहीं होती और वो बहुत होशियार या आपसे अपग्रेड हैं मगर सच ये है कि वो गलतियों को मैनेज करना सीख चुका है और वो आपके सामने अपना वो व्यक्तित्व बनाता है जिससे उसकी इज्जत बढ़े व आप उसकी अनुभूति करे।

लेकिन वो दरअशल वैसा नहीं होता जैसा व्यक्तित्व उसका आप सोच लेते हैं ग़लतियाँ सब करते हैं और मैं तो शायद सबसे ज्यादा ग़लती करता हूँ गलती होना भी स्वाभाविक है असल बात है कि उसे आप स्वीकार कैसे करते हैं, सीखते क्या हैं, ठीक करने के लिए क्या करते हैं या फिर छिपाते कैसे हैं और चालाक बनकर खुद को महाज्ञानी बताकर महान बने रहते हैं तो यह बेवकूफी हमेशा के लिए हमारा व्यक्तित्व धूमिल कर देने कि काबिलियत रखती हैं ।


 - किशन कुमार जोशी

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