यूनानी माइथोलॉजी का एक यूनानी देवता प्रोमीथियस

यूनानी माइथोलॉजी में एक यूनानी देवता प्रोमीथियस का बड़ा ही गजब का वृतांत मिलता है जो हमारी पौराणिक कथाओं से सुलह करता हुआ प्रतीत होता है यूनान के स्वर्ग के देवता होता है प्रोमीथियस.।

जिसे हिंदी में प्रमथ्यु भी कहते हैं, प्रोमीथियस स्वर्ग से धरती को देखता था कि इंसान बड़ी बदहाली में हैं, कभी उसके बच्चों को जंगली जानवर खा जाते, तो कभी वे ठंड से मर जाते हैं, देवताओं की तरह दो पांवों पर चलने वाला प्राणि सारे चौपायों से गया गुजरा नजर आता है तो वह बहुत दुःखी होता है औऱ  एक युक्ति सोचता है...

उसने देखा कि स्वर्ग में आग है और इस आग ने देवताओं को बहुत से सुख, शक्ति और सुरक्षा दी है अगर यह आग किसी तरह धरती पर इंसान के पास पहुंचा दी जाए तो इंसान भी अपनी बहुत सी पीड़ाओं से मुक्त हो जाएगा।

लेकिन बड़ी दिक्कत यह थी कि वहाँ ज्यादा स्वतंत्रता नहीं थी हमारी तरह हमारा स्वर्ग लोकतांत्रिक स्वर्ग है इंद्र यहाँ के राजा हैं जो सबकी सुनते हैं औऱ कोई भी देवता कुछ भी बाँट देते हैं लेकिन यूनान में स्वर्ग की सारी शक्तियों औऱ सामग्री पर स्वर्ग के राजा व सभी देवताओं का नियंत्रण था..।

सीधी भाषा मे कहें तो आग पर स्वर्ग और देवताओं के देवताओँ का कॉपीराइट था। 

प्रोमीथियस अकेला क्या करता..?

उसने स्वर्ग से चुपचाप आग चुरा ली औऱ चुपके से आग धरती पर इंसानों को दे आया, आग मिलते ही इंसान की रातें रोशन हो गईं, उसका भोजन पकने लगा, जंगली जानवर उससे डरने लगे, धरती पर सुख की ऊष्मा पसरने लगी लोग ख़ुशी का अनुभव करने लगे..,

सुख आया तो देवताओं को याद करना मनुष्य ने स्वभाविक रूप से कम कर दिया...

अब यूनान के देवताओं के पुनः रूपी आर्थिक बजट हिलने लगे क्योकिं मनुष्य ने याद करना बंद कर दिया देवताओं ने जांच की तो पता चला कि कांड हो चुका है देवताओं की बपौती आग, धरती पर पहुंच चुकी है।

आदमी आत्मनिर्भर हो रहा है, यह पता लगते भी देर न लगी कि आग प्रमथ्यु ने धरती तक पहुंचाई है भाईसाहब प्रमथ्यु को बंदी बनाकर देवताओं के राजा के सामने पेश किया गया औऱ हर कोई उसे कड़ी सजा देता चाहता था ज्यादातर तो मृत्युदंड ही चाहते थे लेकिन मृत्युदंड संभव नहीं था, देवता अमर होते हैं, भला वे कैसे मरेंगे..?

तब यूनान के इंद्र ने एक ज्यादा ख़तरनाक सज़ा सोची भाई इंद्र है कुछ डिफरेंट ही सोचेंगा.. प्रमथ्यु को स्वर्ग से निकालकर धरती पर लाया गया और यहाँ इंसान की बस्ती के पास कम ऊंची पहाड़ी पर उसे सलीब पर टांग दिया गया, सलीब मेरे लिए भी नया शब्द था गूगल किया तो पता  चला कि यह दिखने में वैसा ही है जैसा ईसा मसीह का सलीब है जिस पर वो टँगे हैं.,

प्रोमीथियस के शरीर में ठुकी कीलों से रक्त की धारा बह निकली और प्रोमीथियस असहनीय वेदना में टंगा हुआ था रोने लगा, फिर उसके कंधे पर एक गिद्ध बैठाया गया जो दिनभर जीवित प्रमथ्यु का मांस नोचकर खाता औऱ रात में जब गिद्ध सोता तो प्रमथ्यु का मांस फिर से भर जाता क्योंकि वह अमर देवता था तो सुबह से गिद्ध फिर वही क्रम शुरू कर देता।

प्रमथ्यु की चीखें मानव बस्ती तक पहुंचती रहतीं सुबह की पहली किरण के साथ बस्ती वाले उस पहाड़ के नीचे पहुंच जाते वे दिनभर प्रमथ्यु की चीखों को तमाशे की तरह देखते और मनोरंजन करते व शाम को फिर अपनी झुगियों में आ जाते..।

जिन मनुष्यों के लिए सलीब पर टंगा प्रमथ्यु अपना मांस नुचवा रहा था और असहनीय पीड़ा झेल रहा था, वहीं मनुष्य उसकी लाई आग से आगे बढ़ रहे थे और उसकी बेबसी का उत्सव मना रहे थे।

मानव कितना स्वार्थी हैं ना, बहुत जल्दी भूल जाता है..।

वैसे यह यूनानी माइथोलोजी से जुड़ी कहानी तो यहीं समाप्त होती है लेकिन कथा में बताई बात कभी खत्म नहीं होगी वह हर महापुरुष पर लागू होती है, जिसे गोली से नहीं मारा जा सका लिंकन, गांधी सौभाग्यशाली थे कि उन्हें गोली से मार दिया गया जो नहीं मरें उन्हें हमेशा कोसा जाता रहा है जो देश की मरते दम तक सेवा करते रहे जब तक वे सेवा कर रहे थे, जब तक वे स्वर्ग की आग भारत तक ला रहे थे, वे हीरो थे उनके जाने के बाद हमने उनके पूरे किरदार को सलीब पर टांग दिया और गिद्ध की तरह उसे रोज नोच रहे हैं...।

पहाड़ी के नीचे खड़े होकर उनकी पीड़ा का तमाशा देखने का सिलसिला अब इतना लंबा हो गया है कि तमाशाइयों की नई पीढ़ी यह भूल ही गई है कि इस शख्स को किस बात की सजा दी जा रही है। 

आज देखिए कोई गाँधी को गाली दे रहा है कोई नेहरू को, कोई तो विवेकानंद को भी कोसते हैं कोसने वाले लोगों और उनके सुनने वालों को फिर याद दिलाता हूं कि यह सब लोग गाँधी, बोस, आजाद, भगत, पटेल, नेहरू इन सब का जुर्म यही था कि  सब अंग्रेजी राज में वह सारे सुख सुविधाओं को भोगने की काबिलियत को छोड़कर बागी हो गए ।

( प्रोमीथियस से जुड़ी जानकारी गूगल से ली गयी हैं )

- किशन कुमार जोशी

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