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स्वास्थ्य को आम तौर पर हम बहुत बाह्य और सतही ढंग से ही समझते रहे हैं। जो युवा है , वह स्वस्थ ही होगा ऐसा बहुधा माना जाता है। अगर प्रौढ़ों-वृद्धों में होने वाला कोई रोग अगर किसी युवा में हो और उससे वह असमय काल-कवलित हो जाए , तब पढ़े-लिखे लोगों के मन में बात कौंध सकती है : शायद इसके भीतर कोई रोगवर्धक जीन मौजूद रहा हो।
मेडिकल-छात्र कीटाणुओं का जब विस्तृत अध्ययन करते हैं , तब उन्हें होस्ट-जीन-इंटरैक्शन पढ़ाये जाते हैं। होस्ट यानी आतिथेय , वह शरीर जिसमें कीटाणु रहता है। जिसका वह दोहन करता है। जैसे वर्तमान पैंडेमिक के सन्दर्भ में मनुष्य होस्ट हुआ। इस होस्ट के भीतर जितनी कोशिकाएँ हैं , उनमें डीएनए है और इन्हीं डीएनए-खण्डों से बने हैं जीन जो तरह-तरह के प्रोटीनों का निर्माण किया करते हैं।
कीटाणु जब होस्ट के शरीर में प्रवेश करता है , तब उसकी प्रोटीनों का सम्पर्क होस्ट की प्रोटीनों से होता है। यह सम्पर्क कीटाणु के लिए क़दम-क़दम पर मददगार भी हो सकता है और बाधाकारक भी। इसी आधार पर कीटाणु की होस्ट के भीतर वृद्धि आसान या मुश्किल हो जाया करती है। वर्तमान सार्स-सीओवी 2 विषाणु के सम्बन्ध में भी वैज्ञानिकों की नज़र इस विषाणु के प्रोटीनों और उससे सम्पर्क में आने वाली मानव की प्रोटीनों पर है। इन दोनों प्रकार की प्रोटीनों के परस्पर सम्पर्क से यह तय करने में मदद मिल सकती है कि किसे कोविड 19 कितना उग्र होगा। कौन लक्षणहीन रहेगा , किसे मामूली फ़्लू-जैसे लक्षण होंगे और किसे गम्भीर न्यूमोनिया के साथ जीवन के लिए जूझना पडेगा।
दुनिया-भर के वैज्ञानिक कोविड 19 संक्रमित लोगों का डीएनए जमा करने में लगे हुए हैं। ख़ास तौर पर उनके जीनों को समझना बहुत ज़रूरी है , जो युवा हैं और जिन्हें कोई बड़ा रोग जैसे डायबिटीज़ , हृदय अथवा फेफड़ों का पुराना रोग नहीं है। पर फिर भी वे कोविड-19 से गम्भीर रूप से बीमार पड़े। अलग-अलग देशों चीन , इटली , स्पेन , यूके व अमेरिका में मृत्यु-दर भी अलग-अलग क्यों आ रही है : इसका उत्तर में इनके नागरिकों की भिन्न-भिन्न जेनेटिक्स में छिपा हो सकता है। हम-सभी मनुष्य स्थूल स्तर पर एक होकर भी सूक्ष्म स्तर पर बहुत अलग-अलग हैं : आनुवंशिकी की यह भिन्नता हमारी रोगभुक्ति और रोगमुक्ति तय कर रही है।
ओ ब्लडग्रुप अपेक्षाकृत कोविड 19 से कम पीड़ित होगा और ए ब्लडग्रुप अधिक --- ऐसी कुछ ख़बरें कुछ दिन पहले प्रकाशित हुई थीं। अनेक ऐसे लोग भी इस रोग से गम्भीर रूप से पीड़ित और मृत हुए हैं , जो युवा थे और जिन्हें कोई पुराना रोग नहीं था। कुछ ऐसे वृद्ध भी अन्ततः स्वस्थ हो गये हैं , जो गम्भीर रूप से संक्रमित हुए थे।
इन-सब ख़बरों से आशा और निराशा दोनों जग सकती हैं। किन्तु आशा-निराशा उनके लिए है , जो नतीजों पर नज़र गड़ाये हैं। वैज्ञानिकों की टीमें तो फिलहाल अपने काम में लगी हुई हैं : उन्हें कोविड 19 के ससेप्टिबिलिटी-जीन ढूँढ़ निकालने हैं। वे जीन जो यह तय कर रहे हैं कि व्यक्ति पर इस विषाणु का गम्भीर दुष्प्रभाव हो।
जीनों को जानना अपने देह-दुर्ग की शक्ति और क्षीणता को पहचानना है। यह शत्रु को जानने से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है।
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