प्रकृति पशुओं-पक्षियों के प्रति की गई हिंसा व क्रुरता अपराध की पहली सीढ़ी है।

जीवों जन्तुओं के प्रति की गई क्रुरता व हिंसा मानवीय हिंसा व क्रुरता की अनुगामिनी नहीं पूर्वगामिनी है। 



अख़बार प्रति
              
हर साल 5 जून को पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। लेकिन पर्यावरण दिवस से पहले "मैने एक ख़बर पढ़ी कि केरल में पटाखों से भरा एक अनानास कुछ शरारती तत्वों ने एक गर्भवती हथनी को खिला दिया जिसके बाद नदी में खड़े-खड़े उसकी मौत हो गई बहुत से लोग इसे सोशल मीडिया पर अमानवीय बता रहें हैं व रोष प्रकट कर रहें हैं पता नहीं यह उन्होंने क्या सोच के और कैसे किया। ये घटना 27 मई की बताई जा रही है पुलिस ने इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर भी फाइल की है। आज एक बार फिर केरल के मलाप्पुरम में गर्भवती हथिनि से निर्दयता के बाद हिमाचल में गर्भवती गाय के साथ बर्बरता हुई है विस्फोटक भरा खाना खिला कर जबड़ा बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया है। आखिर क्या बिगाड़ा है इन्होंने किसी का किस जुर्म की सजा इन्हें दी जाती रही है। कोई लोग सोशल मीडिया पर अलग अलग उदाहरण दे रहें हैं साथ ही यह भी जाहिर कर रहें हैं कि यह देश का सबसे हिंसक जिला है, उदाहरण के तौर पर इन्होंने सड़क पर जहर फेंक दिया जिससे 300-400 पक्षी और कुत्ते एक साथ मर गए वेसे यह घटना तो उज़ागर हुई है न जाने ऐसी कितनी ही घटनाएं हो चुकी हैं। अनेको उदाहरण हमारे सामने है अपने आस - पास ही जहाँ अक्सर जानवरो के साथ हुए अत्याचारों के तरफ़ हमारा ध्यान नहीं जाता है। मेरा मानना है कि प्रकृति पशुओं-पक्षियों के प्रति की गई हिंसा मानवता के लिए खतरा पैदा करती है।

मानवतावादी होने के नाते मुझे तो कम-से-कम जानवरों के प्रति ऐसे किसी भी व्यवहार कि उम्मीद नहीं थी कोई कैसे यह सब कर सकता है आज जो भी लोग जानवरों के साथ यह सब कर रहे हैं कौन गारन्टी देता है कि आने वाले समय मे यही लोग इंसानों को बख्स देंगे। वैसे भी आजकल तो लोग इंसानों तक कि क्रूरतापूरक हत्याओं को अंजाम देने में पीछे नहीं हटते है तो जानवर की बात तो दूर है। आजकल प्रायः ही क्रूरता के नवीन तौर तरीको साथ यह घटनाएं सामने आती रहती है। आप यह मान लीजिए कि आज जो जानवरो पर क्रूरता दिखा रहा है वो भविष्य का अपराधी है जो जघन्य कृत्य करने का अभ्यास भूलवश या शरारत के स्वरूप कर रहा है। मानव का मूल मानवता व दया जब क्षीण हो जाते हैं, तब आपराधिक मामले बढ़ते हैं और जब बच्चे शरारत में या जानबूझकर मनोरंजन समझकर जानवरो से दुर्व्यवहार करते हैं तब व दया और मानवता खो देते हैं और भविष्य के पदचिन्हों को अंकित करते हैं। 

आप सीधे तौर पर समझ लीजिए कि जो बच्चा या युवक व युवती दया व मानवीय भावना का त्याग कर किसी भी जानवर या जीव पर क्रूरता कर रहे हैं व समय आने पर मानव को भी नहीं बख्सेगें। आज जो जानवर पर पत्थर मार रहा है वो वक्त आने पर इंसान की तरफ भी फेंकने में भी हिचकिचाहट नहीं करेगा। ज्यादातर कोई भी अपराधी अपनी  अपराध की अहिलीला शुरू करता है तो वो प्रारम्भ में अपने दुर्व्यवहार का शिकार जानवर को ही बनाता है व धीरे - धीरे मनोरोग की तरफ अग्रसर होकर अपराध से जुड़ जाता हैं। इन भोले - भाले जानवरों और जीवों के साथ केरल में हुए अमानवीय कृत्य, हिमाचल में गर्भवती गाय के साथ हुई बर्बरता इस तरह से अपराध रोज होते रहते हैं और इस तरह के अमानवीय कृत्य के बारे में सोचना भी अपने आप मे घृणित है।

यह सब मानव कि मानवता व दया के गुण के हन्नन के कारण होता है। हम दया को क्यों भूल जाते हैं क्योंकि हम एक - दूसरे को महसूस नहीं करते हैं। आप एक बार खुद को उस जानवर या जीव के रुप मे महसूस कीजिये जिस पर अत्याचार हुआ है या हो रहा है। हम अपने दैनिक जीवन में कई ऐसे व्यक्तियों से मिलते हैं जो दर्द से झूझते हुए कठिन कार्य कर रहें होते हैं। आप अभ्यास के रूप में उनसे भावनात्मक रूप से जुड़िये व समानुभूति को महसूस करिये उसके दर्द की अनुभूती कीजिये सोचिए कि उसपर क्या बीत रही होती है इस तरह हम सहज ही किसी व्यक्ति या जानवरों के वास्तविक दर्द व व्यक्ति के श्रम या कठिनाई की जटिलता को सहज ही समझ सकते हैं। इस तरह का अनुभव ही समानुभूति के रूप में हमें पशुओं-पक्षियों-पेड़-पौधों व अन्य अपरिचित व्यक्तियों के क़रीब ले जाता है और इसी कारण से हम पशुओं-पक्षियों-पेड़-पौधों से जुड़ाव महसूस कर पाते हैं जो धीरे धीरे भावना में परिवर्तित हो जाता है जिसे हम प्रकृति व जीव प्रेमी बन जाते हैं।

अपने बच्चो, छोटे भाई बहनों को इस भावना से जोड़िए अगर वो इस तरह कि भावनाओं से न जुड़ कर प्रकृति से दूर होते रहेंगे औऱ अपने आप को मोबाइल व कम्प्यूटर क्रियाओं तक सीमित रखेंगे तो आने वाले समय मे ढेरों समस्या उन पर आती रहेंगी और वो डिप्रेशन के शिकार भी रहेंगे क्योकि वो पहले ही भावनाओं को सही से समझने कि शक्ति व भावुकता व प्रकृति प्रेम जैसे गुण को क्षीण कर लेंते हैं व परिस्थितियों के अनुरूप ढलने के बजाय दुर्व्यवस्थाओं का शिकार होकर कंही न कंही कलह व मारपीट जैसी स्थिति को आमंत्रित कर लेंते है जिससे अपराध सीधे तौर पर ज्यादातर जुड़े होते हैं।

अंततः मेरा यही मानना है कि अगर आज आप कौतुक के तौर पर जानवरो को परेशान कर खिलवाड़ कर रहे हैं और जो अत्याचार जानकरों पर आपके द्वारा किया जा रहा है यह धीरे - धीरे आपके व्यवहार में परिवर्तन लाता हैं अगर आप वयस्क हैं तो फिर भी आप भावनाओं को समझ सकते हैं, परिस्थितियों को समझ सकते हैं लेकिन बच्चे और युवा इस तरह की घटनाओं से सीखते हैं और यह अपराध की ओर कदम बढ़ाने की ट्रेनिग पूरी कर रहे होते हैं जो समय के साथ - साथ अत्याचार व क्रूरता में निपुर्ण हो पूरी तरह से जानवरों के बाद मानवों के ऊपर आज़माने से नहीं चूकते हैं। इसलिए प्रकृति पशुओं-पक्षियों-पेड़-पौधों से भावनात्मक रूप से जुड़िये सभ्य मानव होने का दायित्व निभाइए ताकि समाज मे अपराधी नहीं बल्कि मानवता पैर जमायें।

- किशन कुमार जोशी (तेजरासर, बीकानेर )
Gmail- kishanjoshi343@gmail.com


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