आधुनिक सभ्य समाज पर हाथरस की घटना गहरा अमानवीय आघात है अब औऱ हाथरस नहीं चाहिए....

यह लेख थोड़ा लम्बा है लेकिन जरूरी भी हैं। हाथरस की घटना के बाद हमें महिला सशक्तिकरण की तरफ जरूरी कदम उठाने होंगे।


Justice For Manisha


दो दिन पहले सब बेटियों की फ़ोटो लगा रहे थे अच्छा लगा समाज व राजनीतिक क्षेत्र मे सबसे ज्यादा शोषण झेल चुकी नारी को परस्परता का मौका मिल रहा है।

मगर यूपी हाथरस की वास्तविकता देखने के बाद मुझे पुरुषवादी समाज से घृणा हो चुकी है।

आदमी आदम का राक्षस हो चला है मेरा इस घृणित समाज से दम घुटता है, यह हम कैसे समाज मे आ चुके जिसमे हम अपनी बहनों और बेटियों को सुरक्षा देने में व उन्हें आजादी से जीने के लिए खुला माहौल तक नहीं दे सकते।

यह घटना स्वस्छ समाज के मुँह पर तमाचा है यह आधुनिक समाज मे पशुत्व व राक्षस प्रजाति का नवीन दर्शन हैं।

हमे खुले मंच पर ऐसे उत्पीड़ित व क्रुरता के बारे में साथर्क बहस व चर्चा को बढ़ावा देना होगा व ऐसी घटनाएं भविष्य में न हो इसके लिए माहौल बनना होगा ऐसी घटनाओं के कारक व कारण आज से नही बल्कि लम्बे समय से समाज मे व्याप्त हैं इन्हें ढूंढ़ना होगा जो ऐसे अपराधो लिए जिम्मेदार है।

आज इस आधुनिकता के युग मे ढींगे हांकने के बाद भी हमारा समाज महिलाएं को केवल व केवल उपयोग हेतु वस्तु मानता है आप बाजार को ही देख लीजिए जिस तरह आज का व्यवसायिक प्लेटफार्म महिलाओं को प्रस्तुत कर रहा वह कम निन्दनीय नही हैं और फिल्मीसिटी में सबसे ज्यादा नारी का पतन हो रहा उसमे नारी को भोग की अभिलाषा तक सीमित कर दिया गया है व फिल्मी जगत के कुछ अपवादों ने भारतीय समाज मे महिला का दुष्प्रचार किया है वह दुःखदायी है तथा खुद महिलाएं इसे स्वीकार नहीं कर पा रही है व फिल्मी दुनियाँ में आईटम डांस व अंग प्रदर्शन को ही आजादी से जोड़ रही हैं जो कि गलत व अनुचित हैं यह वास्तविक आजादी नहीं हैं।

महिलाएं खुद संगठित नहीं है या मैं यह कहूँ की हमने महिलाओं को संगठित होने का मौका नहीं दिया क्योंकि हमने महिलाओं को कभी भी सामाजिक व परम्परागत चर्चा में उन्हें हिस्सेदारी नहीं दी सदैव पुरुष के पीछे ही उसे छुपाया व पुरुषवादी सोच को हमने ऊपर रखा व महिला से पहले पुरुष का महत्व ज्यादा रखा उसका परिणाम भी कंही कंही ऐसी घटनाएं हैं जो महिलाओं के उत्पीड़ित व शोषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं।

महिलाएं कब तक अपनी घुटन व गुलामी कि जिंदगी जीती रहेगी उन्हें इस घुटन व दबाव भरी व नियमो कायदों की जंजीरों से आज़ादी के साथ सुरक्षित माहौल कब मिलेगा आज लड़का और लड़की कि बराबरी केवल कागजो तक सीमित हैं और यह कटु सत्य हैं आज समाजिक (आंतरिक समाज जिसमे समाजिक सरचनाएँ हैं ) , राजनीतिक (आंतरिक मुख्य विचारधाराओं जो चुनाव में वोटिंग का निर्णय करती हैं) परिवारिक फैसले लेने के लिए आज भी महिलाओं को पक्ष व परस्पर मौका नहीं मिलता उसे आज आज भी अज्ञानी मानकर रसोई तक सीमित रखा गया है व उसकी आजादी आँगन तक ही हैं न वो खुलकर समाजिक बहस कर सकती हैं न खुलकर राजनीतिक मत रख सकती हैं उनकी कोई निजी राय महत्वहीन है और हम इसको आधुनिक व बराबरी वाला समाज कहते हैं व आधुनिकता की मिशाल देते फिरते हैं जबकी आज भी हमारा समाज आदिमानव काल की तरह पशुतुल्य ही है।

हाथरस कि यह घटना यूपी सरकार की कानून व्यवस्था पर गहरा काला धब्बा है।

उत्तप्रदेश में महिला सुरक्षा कि पोल खुल गयी है साथ ही इसको जातिगत रंग में रंगा गया जिस पर मुझे बहुत आश्चर्य महसूस हो रहा है कि किस तरह हमारी गर्दन पर छुरी चलाई जा रही है सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं लेकिन व न्याय की कोई बात नही यहाँ भी कुछ नेता चुनावी रोटियां सेकने से बचे नहीं हैं यहाँ भी व जातिवाद जैसे घटिया खेल राजनीतिक फायदे के लिए खेल रहे हैं।

उत्तरप्रदेश सरकार अपराधियों के साथ गंठजोड़ बनाकर उनकी सहायक बनी हुई है तथा कल जो मीडिया महिला उत्पीड़न के नाम पर कंगना के लिए गला फाड़ - फाड़ कर चिल्ला रहा था  लेकिन इस पीड़ित बेटी के लिए उसकी जुबान कट चुकी है वो चुप हैं क्या मीडिया केवल राजनेतिक फायदे के लिए ही अपने आपको समर्पित करेगा जो केवल व केवल मुद्दों को बनाता है व खत्म करता है और उन मुद्दों का जनता के लिए कोई मूल्य नहीं हैं मुझे भारतीय मीडिया के लिए केवल इतना कहना है कि आज मीडिया समाज व देश और लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे बड़ा दुश्मन हैं जो धीरे धीरे देश की नींव खोकली कर रहा है।

आज महिला मोर्चे व तमाम महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रहे संगठन मुँह में दही जमाये बैठे है सिथळ है।

नारी उत्पीड़न व शोषण के खिलाफ लड़ने का ढोंग कर राजनैतिक फायदा लेने वाली केंद्र कि भाजपा सरकार भी आज चुप हैं क्योंकि उत्तरप्रदेश में हिन्दू ह्रदय सम्राट योगी आदित्यनाथ कि भाजपा सरकार है।

हमें सोचना होगा कि नारी कब तक उत्पीड़ित व गुलामी से जिंदगी जीती रहेगी और कब तक केवल वस्तु की भाँति अपने आप को  उपभोग मानती रहेगी हम कब अपनी बहनों व बेटियों को आजादी के साथ सुरक्षित माहौल दे पाएंगे  ..?


- किशन कुमार जोशी

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